Monday, January 18, 2016

वर्तमान परिदृश्य में डेयरी पशु कल्याण

आजकल कृषि के साथ डेयरी पशुपालन का व्यवसाय किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो रहा है. परन्तु अधिक लाभ कमाने के लिए कुछ लोग पशुओं को चलती-फिरती फैक्टरी समझने लगते हैं जो सर्वथा अनैतिक है तथा पशु कल्याण हेतु स्थापित माप-दंडों का उल्लंघन है. पशुओं के कल्याण के विषय में सोचना न केवल हमारी नैतिक जिम्मेवारी है अपितु यह क़ानून संगत भी है कि हम पशुओं के साथ मानवीय व्यवहार करें. डेयरी पशु भी मानव की भांति प्रशिक्षित हो सकते हैं तथा उनमें शारीरिक वेदना अनुभव करने की शक्ति होती है. अतः इनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है. यदि हम अपने पशुओं के कल्याण के बारे में चिंतित रहेंगे तो ये भी हमारी सेवा अधिक बेहतर ढंग से कर पाएंगे. यूं तो पशु कल्याण एक बहु-आयामी विषय है, फिर भी निम्न-लिखित बिंदुओं पर ध्यान देकर हम पशुओं के लिए अधिक कल्याणकारी वातावरण सुनिश्चित कर सकते हैं.
संकर नस्ल प्रजनन
आजकल गायों से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए संकर प्रजनन प्रणाली अपनायी जा रही है जिसमें इनके कल्याण से जुडी अनेक समस्याओं की अनदेखी हो रही है. हालांकि पशु स्वास्थ्य एवं कल्याण सर्वोपरि होना चाहिए परन्तु कई बार छोटे आकार की नस्लों से अपेक्षाकृत बड़े आकार के होल्सटीन बच्चे पैदा किए जाते हैं जिससे स्थानीय नस्ल की गायों को प्रसवकाल के दौरान न केवल अधिक पीड़ा होती है अपितु यह इनके लिए जानलेवा भी हो सकता है. कम दूध देने वाले पशुओं को हटा कर विदेशी नस्लों से तैयार संकर पशु आर्थिक दृष्टि से तो उपयुक्त प्रतीत होते हैं परन्तु कुछ समय बाद इनमें प्रतिकूल वातावरणीय परिस्थितियों के कारण स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न होने लगते हैं. अक्सर देखा गया है कि संकर नस्ल के पशु विपरीत वातावरणीय परिस्थितियों में स्वयं को ढाल नहीं पाते तथा शीघ्र ही बीमार हो जाते  हैं.  कभी-कभी संकर प्रजनन डेयरी पशुओं के लिए एक बड़ी चुनौती भी हो सकता है. इसलिए संकर प्रजनन करवाते समय सभी सम्बंधित पक्षों पर विचार करना आवश्यक है.
लंगड़ापन
यह पशुओं के लिए अत्यंत दुखदायी परिस्थिति है जिससे निजात पाना आवश्यक है. लंगड़ापन कई कारणों जैसे कुपोषण, दोषपूर्ण प्रजनन अथवा खराब आवासीय व्यवस्था से हो सकता है. हमें पशुओं के खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि उनकी हड्डियां मजबूत बनी रहें. लंगड़ापन जन्मजात विकृतियों के कारण भी हो सकता है. यदि पशुओं को चलने-फिरने योग्य पर्याप्त जगह न मिले तो इनकी टांगों में विकार हो सकते हैं जो सामान्य ढंग से चलने में बाधक होते हैं. परिवहन के दौरान पशुओं के साथ लापरवाही बरतने पर भी उन्हें मांसपेशियों में अत्याधिक खिंचाव होने का भय रहता है जिससे ये लंगड़े हो सकते हैं. कई बार पशुओं में भय के कारण मची भगदड़ भी लंगड़ेपन का कारण बन सकती है. अतः ऐसी सभी विपरीत परिस्थितियों में इनके कल्याण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है.
थनैला
यह रोग पशुओं के अयन में जीवाणुओं के संक्रमण के कारण होता है. इस रोग का फैलाव पशुओं को दुहते समय पर्याप्त साफ़-सफाई न रखने व संक्रमित अयन पर मक्खियों के बैठने से होता है. इसके कारण पशु को बहुत दर्द एवं असुविधा का सामना करना पड़ता है. यदि इस रोग का उपयुक्त उपचार न किया जाए तो यह जानलेवा भी सिद्ध हो सकता है. इस रोग के कारण दूध में कायिक कोशिकाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है. संक्रमित पशुओं का दूध मानव उपयोग हेतु अनुपयुक्त हो जाता है. इस रोग के कारण डेयरी किसानों को न केवल आर्थिक हानि होती है बल्कि यह पशुओं के स्वास्थ्य एवं कल्याण में भी बाधक होता है. यह रोग अक्सर अधिक दुग्ध उत्पादित करने वाले पशुओं में होता है. हमारी देशी नस्लों की तुलना में यह रोग संकर नस्ल की गायों में कहीं अधिक होता है.
आवासीय व्यवस्था
यदि गायों को रहने के लिए पर्याप्त आवासीय स्थान उपलब्ध न करवाया जाए तो यह उनके कल्याण में बड़ी बाधाएं उत्पन्न कर सकता है. संकर प्रजनन द्वारा तैयार की गई कुछ गायों का आकार बहुत बड़ा होता है परन्तु शहरी इलाकों में इन्हें रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है. बहुत-सी गायों को अक्सर तंग स्थान पर ठूंस दिया जाता है जहां ये अन्य पशुओं से टकराती रहती हैं जिससे इनमें तनाव बढ़ जाता है. अत्याधिक तनाव के कारण गाय आपस में लड़ती रहती हैं तथा डेयरी की उत्पादन क्षमता भी गिर जाती है. गायों को बैठने व लेटने के लिए छत वाली जगह के साथ-साथ टहलने के लिए भी पर्याप्त स्थान की आवश्यकता होती है. आवासीय समस्याओं से निजात पाने के लिए पशुओं को शहर के बाहर खुले स्थानों पर रखना अधिक बेहतर होता है. तंग स्थान पर पशुओं को सांस लेने के लिए ताज़ी हवा भी नहीं मिलती जिसके अभाव में ये अस्वस्थ रहते हैं. इसलिए गायों को प्रति-दिन कुछ समय बाहर खुले क्षेत्र में घास चरने एवं घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए. ऐसा करने से पशु सामाजिक दृष्टि से आपस में जुड़े रहते हैं तथा इन्हें कोई तनाव जैसी परेशानी भी नहीं झेलनी पड़ती. पशु खुली हवा में विचरण करने के कारण शारीरिक दृष्टि से भी हृष्ट-पुष्ट रहते हैं तथा इनका व्यवहार भी सामान्य बना रहता है.
पोषण एवं पेय जल
      स्वस्थ जीवन के लिए पोषण एवं जल का महत्व सर्वाधिक होता है परन्तु      गायों को पर्याप्त चारा व जल आपूर्ति न मिलने से ये कुपोषण का शिकार हो जाती हैं. ऐसी अवस्था में इनकी उत्पादकता भी कम हो जाती है. चारे के अभाव में कुछ लोग अपनी गायों को खुला छोड़ देते हैं तथा ये आवारा घूमते हुए जो भी मिल जाए- खा लेती हैं, जो ठीक नहीं है. ऎसी परिस्थितियों में कई बार गाय अखाद्य तथा जहरीली वस्तुएँ भी खा सकती है. आजकल लोग पोलीथीन की थैलियों में सब्जियों व फलों के छिलके बाहर फैंक देते हैं. भूखी होने के कारण गाय इन्हें थैली सहित निगल जाती है जिससे इनका पाचन तंत्र अवरुद्ध हो जाता है तथा जान भी जा सकती है.  अतः लोगों को चाहिए कि वे अपनी गायों के लिए चारे का प्रबंध घर पर ही करें.  बाहर खुले में प्यास लगने पर गाय पोखर या नाली का प्रदूषित जल पी कर बीमार हो सकती हैं क्योंकि इस प्रकार कई विषैले एवं भारी धातुओं के रसायन इनके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं. अतः इन परिस्थितियों में इनके कल्याण की उपेक्षा करना उचित नहीं है.
नर बछड़े
संकर नस्ल की गायों को उत्पादित करते समय जो नर बछड़े पैदा होते हैं, उनकी कोई उपयोगिता नहीं होती. परिणाम-स्वरुप ऐसे बछड़ों को या तो खाने के लिए पर्याप्त आहार नहीं मिलता या इन्हें सड़कों पर आवारा छोड़ दिया जाता है. कुछ लोग इन्हें यहाँ से पकड़ कर बूचड़-खाने में भेज देते हैं. यह सब आर्थिक कारणों से होता है क्योंकि कोई भी डेयरी किसान अनुत्पादक पशुओं को चारा नहीं खिलाना चाहता. इन बछड़ों की अल्पायु एक नैतिकता से जुडी समस्या बन गई है. क्या प्रसवोपरांत इन बछड़ों को सामान्य देख-भाल पाने का अधिकार नहीं है? क्या इनका कल्याण किसी विवेकपूर्ण ढंग से सम्भव नहीं है? आज ऐसे कई प्रश्नों का हल खोजने के लिए एक सार्थक पहल की आवश्यकता है. प्रजनन करवाते समय ऐसे वीर्य का उपयोग किया जा सकता है जिसमें बछड़ी पैदा होने की संभावनाएं अधिक हों. यदि फिर भी आवश्यक हो तो कुछ बछड़ों को प्रजनन हेतु उन्नत सांड के रूप में बड़ा किया जा सकता है. कुछ बछड़ों को बैल के रूप में चारा या गोबर उठाने के लिए डेयरी के काम में लाया जा सकता है.
पशु परिवहन
पशुओं को परिवहन द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय इनके कल्याण पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता जो सर्वथा अनुचित है. आवश्यकता से अधिक पशुओं को अपेक्षाकृत छोटे आकार के वाहनों में ठूंस-ठूंस कर भर दिया जाता है. कई घंटों की थका देने वाली यात्रा के बाद कुछ पशुओं की या तो मृत्यु हो जाती है या वे चलने-फिरने में सक्षम नहीं रहते. आजकल यूरोप में पशुओं की ढुलाई केवल विशेष प्रकार के वाहनों में ही की जा सकती है तथा प्रत्येक आठ घंटे के सफर के बाद इन्हें अनिवार्यतः विश्राम दिया जाता है. भारतवर्ष में पशु कल्याण संबंधी क़ानून तो हैं परन्तु इनका अनुपालन कड़ाई से नहीं होता है,  जिसके कारण पशुओं को बहुत कष्ट झेलना पड़ता है. सफर के दौरान पशुओं को हिलने-जुलने हेतु पर्याप्त जगह देना आवश्यक है. अतः परिवहन के दौरान किसी प्रकार के बॉक्स या क्रेट उपयोग में नहीं लाए जा सकते क्योंकि ये पशुओं के लिए आरामदेह नहीं होते. इसी प्रकार लंबी यात्रा के दौरान पशुओं के लिए पर्याप्त चारे एवं जल की व्यवस्था भी होनी चाहिए.
दुग्ध-दोहन
गायों से दूध प्राप्त करते समय इनके कल्याण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. यदि दुग्ध-दोहन के समय पशु को कोई पीड़ा अथवा तनाव न हो तो यह अधिक मात्रा में दूध देता है. हाथों से दूध दुहते समय पशुओं को कोई पीड़ा नहीं होनी चाहिए. दूध निकालने का समय एवं ढंग न केवल यथासम्भव आरामदेह हो बल्कि यह पशु-अयन के स्वास्थ्य के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए. यदि दुग्ध-दोहन के दौरान स्वच्छता पर पर्याप्त ध्यान न दिया जाए तो पशुओं में थनैला रोग होने की संभावना बढ़ सकती है. आजकल मशीन द्वारा दूध निकाला जाता है ताकि कार्य शीघ्रता एवं सुगमता से संपन्न हो सके. यदि दुधारू गायों को इसकी आदत हो जाए तो मशीन मिल्किंग पशुओं के लिए अपेक्षाकृत अधिक आरामदायक होती है.
जैव-विविधता
भारत में गायों की बहुत-सी नस्लें मिलती हैं जो अपने क्षेत्र के वातावरण के अनुकूल होती हैं. इन सभी नस्लों की अपनी विशिष्ट पहचान तथा उपयोगिता होती है. कोई नस्ल केवल अधिक दूध उत्पादन के लिए होती है तो कोई खेतों में काम करने के लिए. अतः किसानों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप ही इन नस्लों का चयन करना चाहिए. यदि गर्म इलाकों के पशुओं को सर्द स्थानों पर रहने के लिए भेजा जाए तो इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसी प्रकार सर्द वातावरण में अनुकूलित पशु अधिक गर्मी झेलने में अक्षम होते हैं. आजकल डेयरी फ़ार्म को एक व्यवसाय के रूप में अपनाते समय इन सब बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है ताकि पशुओं के कल्याण के साथ कोई समझौता न करना पड़े. प्रजनन करवाते समय यह सोचना चाहिए कि कहीं हम अधिक दुग्ध-उत्पादन के लालच में अनावश्यक संकर प्रजनन द्वारा गौवंशीय पशुओं की जैव-विविधता को कोई गंभीर ख़तरा तो उत्पन्न नहीं कर रहे हैं. यदि गोवंश की विशेष नस्लों में उसी नस्ल के चयनित सांडों द्वारा प्रजनन करवाया जाए तो हमें उत्तम गुणों के पशु प्राप्त हो सकते हैं तथा ऐसा करने से जैव-विविधता भी बनी रहती है.
उन्नत पशु प्रबंधन
आजकल बड़े डेयरी फार्मों पर आधुनिक एवं विकसित पशु प्रबंधन प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं. इन प्रणालियों से दैनिक कार्यों का निष्पादन तीव्रता से सम्भव है परन्तु कई बार पशुओं को भारी तनाव भी झेलना पड़ सकता है. पशुओं को सींग रहित करने का कार्य किसी भी उन्नत डेयरी फ़ार्म के लिए नितांत आवश्यक हो सकता है. सींग रहित पशु आपस में लड़ाई नहीं करते जिससे इन्हें चोट लगने का कोई ख़तरा नहीं होता. परन्तु व्यस्क पशुओं के सींग काटने से उन्हें बहुत कष्ट होता है. सींगो को हटाने का काम यथासम्भव जन्म के एक माह के अंदर संपन्न कर लेना चाहिए ताकि पशुओं को न्यूनतम पीड़ा हो. इसी प्रकार विभिन्न टीकाकरण कार्य करते समय पशुओं को भय-मुक्त वातावरण में रखना आवश्यक है ताकि ये सब गतिविधियां इनके लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकें. पशुओं को पोषण एवं जल की आपूर्ति भी भली-भांति की जानी चाहिए ताकि वे अपनी इच्छा एवं आवश्यकतानुसार चारा व जल प्राप्त कर सकें. कई बार चारा चरने की जगह फर्श से अधिक ऊँची होती है जिसमें पशुओं को चरने में कठिनाई हो सकती है. चारा एवं जल इस प्रकार से व्यवस्थित होना चाहिए कि इसके लिए पशु को किसी प्रकार का संघर्ष न करना पड़े. पशुओं के लिए धूप एवं छाँव की आवश्यकता भी मानव की तरह ही होती है, अतः इन्हें भी उसी प्रकार अधिक गर्मी एवं सर्दी से बचाया जाना चाहिए.

आजकल शहरों में कई लोग अपने अनुत्पादित पशुओं को बाहर आवारा छोड़ देते हैं. ये पशु सड़कों एवं बाज़ारों में न केवल दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं, बल्कि इन्हें कई दिन तक भूखा भी रहना पड़ता है. ये पशु पर्याप्त पोषण न मिलने से तनावग्रस्त हो जाते हैं तथा कई बार आपस में लड़ने लगते हैं. ऐसे पशुओं को तुरंत निकटस्थ गौशाला में भेज देना चाहिए ताकि वहाँ इन्हें बेहतर पोषण प्राप्त हो सके. निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण मानवता का कल्याण पशुओं के समुचित कल्याण में निहित है.

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