Tuesday, April 25, 2017

पशुओं का बीमा कैसे करवाएँ?

अन्य व्यवसायों की भांति डेयरी के व्यवसाय में भी कई तरह के जोखिम हो सकते हैं जिन्हें ‘कवर’ करने के लिए हमारे देश में पशु-धन बीमा योजना का प्रावधान किया गया है. ये बीमा योजना सरकारी एवं प्राइवेट बीमा कंपनियों द्वारा सामान रूप से डेयरी किसानों हेतु उपलब्ध है.
बीमित पशु- दुधारू गाय, भैंस, बछड़ी, बैल या सांड चाहे जो भी हो. पशु का बीमा इसके वर्तमान बाज़ार मूल्य पर ही किया जाएगा. बाज़ार का मूल्य पशु का मालिक तथा इंश्योरेंस कंपनी का पशु चिकित्सक दोनों ही मिल कर तय करते हैं. पशु के नियत मूल्य पर ही बीमा ‘प्रीमियम’ देय होता है. बेसिक वार्षिक प्रीमियम दर 4% प्रतिशत तक हो सकती है जिस पर अन्य कर एवं शुल्क (यदि कोई हो तो) बीमा कंपनी के नियमानुसार देय होंगे. सरकारी योजनाओं के अंतर्गत आने वाले पशुओं को बीमा प्रीमियम में छूट दी जा सकती है. बड़े ग्रुप में बीमा लेने पर भी छूट का प्रावधान है. सभी बीमित पशुओं की पहचान हेतु कान में टैग लगवाना अनिवार्य होता है.
पशु की आयु-
दुधारू गाय- 2 वर्ष या प्रथम ब्यांत की आयु से 10 वर्ष तक.
दुधारू भैंस- 3 वर्ष या प्रथम ब्यांत से 12 वर्ष तक.
सांड- 3 से 8 वर्ष तक.
बैल या झोटा- 3 से 12 वर्ष तक.
बछड़ी- 4 माह से 2 वर्ष या प्रथम बार ब्याने तक की आयु, जो भी कम हो.
बीमा अवधि- यह 1 से 3 वर्ष तक हो सकती है जो हर कंपनी के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही होता है.
बीमित पशु का जोखिम- बीमित पशु की निम्नलिखित कारणों से होने वाली मृत्यु पर नुक्सान की भरपाई बीमा कम्पनी के नियमानुसार की जाती है.
पशु पर बिजली गिरने, आग लगने या विस्फोट होने की स्थिति में.
हवाई हादसे या टेस्ट के दौरान मिसाइल गिरने पर.
दंगों या हड़ताल के कारण जान-हानि. आँधी, तूफ़ान, बवंडर, बाढ़ अथवा अन्य प्राकृतिक आपदा.
भूकंप आने से. अकाल की स्थिति में, पशु की सर्जरी करते समय, आकस्मिक दुर्घटना.
बीमित समय के दौरान पशु को संक्रामक रोग होने से. पशु की स्थायी विकलांगता होने पर (अतिरिक्त प्रीमियम देने पर).
निम्नलिखित मामलों में कोई भी जोखिम होने पर मुआवजा नहीं दिया जाएगा.
लापरवाही या जानबूझ कर पशुओं का अनुचित ढंग से परिवहन करते समय विकलांगता या मृत्यु होने पर.
जोखिम आरम्भ होने की तिथि से पहले हुई दुर्घटना या बीमारी या मृत्यु होने पर.
अवैध ढंग से जानबूझ कर पशु का वध होने पर तथा कंपनी द्वारा निर्धारित अन्य परिस्थितियाँ.
लापरवाही से चोरी की वारदात होने देने या पशु को गुप-चुप बेच देने की स्थिति में या पशु की पहचान न होने की स्थिति में.
बीमित राशि का दावा- अधिकतम बीमित राशि तक सीमित अथवा स्थायी विकलांगता होने पर इसका 75% तक देय होगा.
उपर्युक्त जानकारी डेयरी किसानों की त्वरित जानकारी हेतु दी गई है. अपने पशु का बीमा करवाने से पहले आप इंश्योरेंस कार्यालय से सभी नियमों एवं शर्तों का पता लगा लें क्योंकि कुछ शर्तें विभिन्न कंपनियों में अलग-अलग हो सकती हैं.
बीमे का उद्देश्य केवल जोखिम को कम करना होता है. बीमा कभी भी पूरे नुक्सान की भरपाई नहीं करता लेकिन हानि होने की स्थिति में आपको विचलित भी नहीं होने देता.
यदि पशुओं का बीमा किया गया हो तो आप चैन से सो सकते हैं तथा अचानक होने वाले नुक्सान की स्थिति से स्वयं को उबारने में भी सक्षम हो सकते हैं. अगर डेयरी में सारी पूँजी आपकी लगी है तो जोखिम भी आपका ही होता है. वैसे बीमा तो आग्रह की विषय-वस्तु है.परन्तु ‘लोन’ ले कर स्थापित की गई डेयरी में बीमा करवाना अनिवार्य होता है क्योंकि बैंक अपने द्वारा दिए गए क़र्ज़ पर हर तरह की गारंटी तो चाहता ही है.

Sunday, April 23, 2017

नई डेयरी कैसे शुरू करें?

क्या आप डेयरी फ़ार्म शुरू करने जा रहे हैं? यदि हाँ, तो यह अवश्य सोच लें कि डेयरी फ़ार्म का मतलब दूध की फैक्ट्री नहीं है कि जिसमें एक तरफ घास डालते जाएं और दूसरी ओर से दूध निकलने लगेगा! डेयरी फार्मिंग एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें आपको कड़ी मेहनत, दृढ इच्छा शक्ति एवं पूर्ण मनोयोग से काम करने की आवश्यकता पड़ती है. याद रखें कि यह इतना सस्ता व्यवसाय भी नहीं है जिसे मामूली पूँजी से शुरू किया जा सके. फिर भी अगर आपने अपनी डेयरी स्थापित करने का मन बना ही लिया है तो चिंता करने की कोई बात नहीं है. अगर आपको पशु-पालन का पूर्व अनुभव है तो अच्छी बात है, अन्यथा आप इस विषय में 10-15 दिन का डेयरी प्रशिक्षण प्राप्त कर लें तो बहुत अच्छा रहेगा. डेयरी फार्म की स्थापना पूर्ण योजनाबद्ध ढंग से होनी चाहिए. डेयरी के लिए वित्तीय सहायता एवं सरकारी सब्सिडी सम्बन्धी जानकारी पहले से ही प्राप्त कर लें ताकि इस व्यवसाय हेतु धन की कमी आड़े न आए. तो चलिए, हम भी आपके साथ डेयरी स्थापित करने के सफ़र पर निकलते हैं.
अगर आपने डेयरी हेतु एक स्थान निश्चित कर लिया है तो यह भी सोच लें कि आप किस डेयरी पशु में अधिक दिलचस्पी रखते हैं. आप गाय या भैंस में से किसी एक को चुन सकते हैं. अगर स्थान अधिक नहीं है तो आपके लिए बकरियों का विकल्प भी बुरा नहीं हैं.
स्थान एवं पशु प्रजाति का चयन
आप अपने क्षेत्र में आराम से रहने वाली प्रजातियों के विषय में ही सोचें. विदेशी नस्ल के पशु रखने से पहले यह विचार अवश्य करें कि क्या वे आपके स्थानीय वातावरण के अनुकूल स्वयं को ढाल भी सकेंगे या नहीं? यदि पशु अधिक गर्मी या सर्दी अनुभव करें तो इन्हें तनाव होगा तथा इनकी उत्पादकता कम होने लगेगी. अतः डेयरी हेतु पशुओं की नस्ल का चुनाव इन सब बातों को ध्यान में रख कर ही करें. पशुओं के खरीद मूल्य पर ध्यान देते हुए इस बात का भी आकलन कर लें कि गाय या भैंस की दुग्ध-उत्पादन क्षमता कितनी है तथा यह दूध देकर अपनी कीमत कितने दिनों में पूरी कर सकती है. डेयरी के आस-पास घास एवं चारे की उपलब्धता भी सुनिश्चित कर लें क्योंकि दूर से चारे की ढुलाई करने पर डेयरी अनार्थिक हो सकती है. इसी तरह यह भी पता लगाएं कि प्रस्तावित डेयरी के निकट कोई दूध बेचने हेतु बाज़ार है या नहीं? अगर दूध खरीदने के ग्राहक आपके पास न हों तो इसे दूरस्थ स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन खर्च अधिक आएगा जिससे डेयरी के मुनाफे में कमी हो सकती है. डेयरी पशुओं से उत्पन्न हुए बछड़े एवं बछड़ियों के बिक्री मूल्य का भी आकलन कर लें ताकि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नस्ल के पशुओं को ही अपनी डेयरी में स्थान मिल सके.
प्रजनन हेतु कृत्रिम गर्भाधान
प्रत्येक गाय की दुग्धावस्था एक निश्चित समय तक ही होती है जो लगभग दस महीने की होती है. अतः इसे दुग्धावस्था के दौरान ही ग्याभिन करवाना पड़ता है ताकि गाय का शुष्क-काल कम से कम अवधि का हो. गाय को ग्याभिन करवाने के लिए सांड की बजाय कृत्रिम गर्भाधान का सहारा लें. कृत्रिम गर्भाधान गर्भ-धारण करने की सरलतम एवं सुरक्षित तरीका है. यह सांड रखने की तुलना में कहीं अधिक सस्ता पड़ता है. आजकल प्रायः सभी अच्छी नस्लों के वीर्य बाज़ार में मिल जाते हैं. कृत्रिम गर्भाधान की सफलता उपयुक्त गुणवत्ता के वीर्य, गर्भाधान करने वाले व्यक्ति के प्रशिक्षण एवं अनुभव तथा गाय के हीट में होने अर्थात सही समय पर गर्भाधान करने पर निर्भर करती है.
उन्नत डेयरी प्रबंधन
किसी भी डेयरी को आरम्भ करते समय अधिक पूँजी निवेश की आवश्यकता पड़ती है, परन्तु बाद में काम-चलाऊ पूँजी तो दूध की बिक्री से मिलती रहती है. आरंभ में होने वाला अधिकतर पूँजी निवेश गायों के आवास, भूसे एवं दाने हेतु भण्डार-गृह, दूध इकठ्ठा करने के लिए टैंक, मशीन मिल्किंग पार्लर की व्यवस्था, मल-मूत्र को खाद में बदलने की इकाई, चारा काटने की मशीन, ट्रेक्टर-ट्रोली जैसे उपकरण, पानी एवं चारे हेतु नाद तैयार करने हेतु किया जाता है. डेयरी में विभिन्न आयु वर्गों के पशुओं हेतु अलग अलग बाड़े होने चाहिएं ताकि पशुओं में आपसी संघर्ष को टाला जा सके. बाहर से खरीद कर लाए गए पशुओं के लिए एक अलग स्थान पर बादा बनाना चाहिए जहाँ इन्हें कुछ दिन अलग ही रखना चाहिए. ऐसा करना इसलिए आवश्यक है ताकि फ़ार्म में कोई संक्रमित पशु अपनी बीमारी न फैला सके. सभी पशुओं को टैग नंबर की पहचान दें ताकि इनके स्वास्थ्य एवं उत्पादन से सम्बंधित आंकड़े एकत्र करने में आसानी रहे. डेयरी हेतु सींग रहित पशुओं का ही चुनाव करें ताकि इनकी दैहिक ऊर्जा आपसी-संघर्ष की बजाय दुग्ध-उत्पादकता पर केन्द्रित हो सके. पशुओं के प्रजनन, स्वास्थ्य एवं दुग्ध-उत्पादन सम्बन्धी आंकड़े अवश्य रिकॉर्ड करें क्योंकि इनकी सहायता से आप अपने व्यवसाय को अत्यधिक लाभप्रद बना सकते हैं. अपने फ़ार्म हेतु एक पशु चिकित्सक एवं सहायक की व्यवस्था भी अवश्य करें ताकि किसी भी पशु के अस्वस्थ होने पर इन्हें उपचार दिया जा सके.
डेयरी पशु-कल्याण
हमें फ़ार्म में रखे गए सभी पशुओं के कल्याण के विषय में सोचना चाहिए. यदि पशुओं के कल्याण से कोई समझौता किया जाए तो यह डेयरी की उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव डालता है. सभी पशुओं को नियमित रूप से विभिन्न रोगों के बचाव टीके लगवाने चाहिएं. इन्हें हर तीन महीने में एक बार पेट के कीड़े मारने की दवा भी दें. इन्हें बाह्य-परजीवियों से बचा कर रखें ताकि त्वचा संक्रमण-रहित रहे. स्वस्थ पशुओं से ही स्वच्छ दूध मिलता है. केवल स्वच्छ दूध बेचने से ही बाज़ार में अधिक दाम मिलता है. अतः डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय में स्वच्छता का अत्यधिक महत्त्व है. अगर आपके डेयरी फ़ार्म की उत्पादकता बहुत अधिक है तो आप किसी बड़ी डेयरी से संपर्क कर सकते हैं जो आपके यहाँ से हर रोज़ सारा दूध उठा कर प्रसंस्करण हेतु मिल्क-प्लांट तक ले जाएंगे. ये बड़े प्लांट मालिक आपकी डेयरी के दूध को अपेक्षाकृत अच्छे मूल्य पर खरीद करते हैं. अगर दुग्ध-उत्पादन कम हो तो आप निकटवर्ती बाज़ार में छोटे-मोटे हलवाई या क्रीम निकालने वाले व्यवसाइयों को भी दूध बेच सकते हैं. यदि दूध की गुणवत्ता अच्छी हो तो ग्राहक आपकी डेयरी से भी दूध खरीद कर ले जा सकते हैं. डेयरी में गंदगी एवं मक्खियाँ अधिक होने से दूध की गुणवत्ता तथा इसके मूल्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है.
देश में कई डेयरियाँ आधुनिक उपकरणों एवं यंत्रों की सहायता से अधिकाधिक कार्य कर रही हैं जिससे न केवल मजदूरी की लागत कम होती है बल्कि इस व्यवसाय से अधिक लाभ भी प्राप्त होता है. अतः आज डेयरी को अधिक लाभ कमाने के लिए अत्यधिक व्यावसायिक होने की आवश्यकता है. आजकल वांछित आनुवंशिक गुणों एवं दुग्ध-उत्पादन क्षमता की गऊएँ मिलने लगी हैं जिससे डेयरी व्यवसाय की लोकप्रियता अधिक तीव्रता से बढ़ रही है. 

Thursday, March 30, 2017

डेयरी व्यवसाय से लाभ कैसे मिलेगा?

डेयरी व्यवसाय से लाभ कैसे मिलेगा?
डेयरी किसानों की सबसे बड़ी समस्या है कि जो दूध वह उत्पादित करते हैं, उन्हें बाज़ार में उसका खरीदार ही नहीं मिलता और अगर खरीदार मिल भी गया तो इसका पूरा मूल्य नहीं मिलता. किसानों की शिकायत है कि वे प्रति लीटर दूध उत्पादन पर अधिक खर्च करते हैं किन्तु उन्हें इसका लागत मूल्य भी नहीं मिलता. आइए, आज हम आपकी इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करते हैं.
यह बात तो सही है कि नई तकनीकियाँ आने के बाद हमारे किसान उन्नति की राह में पीछे छूट रहे हैं. अब यह तो संभव ही नहीं है कि हम अपने किसानों को रातों-रात शिक्षित बना दें लेकिन उन्हें कुछ ऐसा अवश्य ही करना चाहिए जैसे आजकल हमारे शिक्षित नौजवान अपना काम कर रहे हैं.
गाय की डेयरी से हमें कई प्रकार के उत्पाद एवं उपोत्पाद प्राप्त होते हैं. इनमें दूध, गोबर, मूत्र तथा बचा हुआ घास-फूस आदि प्रमुख हैं. अगर आप अपने पशुओं का गोबर बेचेंगे तो संभव है कोई खरीदने को ही तैयार न हो. अगर कोई खरीदार मिल भी गया तो वह इसके मामूली दाम ही देगा. यही हाल दूध का है. दूध में बढ़ती हुई मिलावट की प्रवृत्ति ने ईमानदार किसानों को भी कहीं का नहीं छोड़ा है. जो किसान स्वच्छ दुग्ध-उत्पादन करते हैं उन्हें दूध बेचने में कोई विशेष परेशानी नहीं होती. कई लोग दूध निकालते समय सफाई आदि का ध्यान नहीं रखते, जिससे इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है.
बड़ी डेयरियों के टैंकर तो हज़ारों लीटर दूध खरीदते हैं जिसमें थोडा बहुत खराब भी खप जाता है. छोटे डेयरी मालिकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है. दूध की मात्रा इतनी कम होती है कि कोई दूध खरीदने वाला इन तक नहीं पहुँच पाता. दूध जल्द ही खराब होने वाला आहार है, अतः निकलने के तुरंत बाद ही इसका प्रसंस्करण करना आवश्यक होता है. ऐसा करने से दूध की शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है अर्थात यह अधिक देर तक खराब हुए बिना रह सकता है. डेयरी किसानों को अपनी डेयरी में लगाए निवेश का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए.
• गोबर को व्यर्थ फैंकने से बेहतर है कि इसके उपले बना कर बेचे जाएं ताकि अधिक मूल्य प्राप्त हो.
• बचे-खुचे भूसे, मॉल-मूत्र एवं चारा अवशेषों को गला-सड़ा कर केंचुओं की सहायता से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है. इसकी बाज़ार में मांग बहुत अच्छी है तथा यह सात से आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा सकती है.
• जिन किसानों के पास अपने संसाधन हैं वे चाहें तो गोबर गैस प्लांट भी लगा सकते हैं जिससे डेयरी की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति मुफ्त में हो सकती है.
• स्वच्छ दुग्ध-उत्पादन करें ताकि साफ़-सुथरे और मिलावट रहित दूध को देख कर ग्राहक जल्दी से खरीदने की सोचे.
• जो लोग शहरों से अधिक दूर नहीं रहते, वे दूध से खोया तैयार करके  हलवाइयों को बेच सकते हैं जो अत्यंत लाभकारी है. मैंने मथुरा और आगरा के आसपास बहुत से डेयरी किसानों को ऐसा करते हुए देखा हैं.
• दूध से पनीर बनाना भी आसान है जिसे आप स्वयं अथवा सब्जी वालों के माध्यम से अच्छे दाम में बेच सकते हैं. आजकल होटलों और ढाबों में भी इसकी खूब मांग है.
• अगर आपके आस-पास छोटी डेयरियाँ हों तो आप अपने पशुओं के दूध की फैट निकलवा सकते हैं जिसे ‘क्रीम’ कहा जाता है. यह क्रीम या तो लोकल डेयरी वाले खरीद लेते हैं या फिर आप इस क्रीम से मक्खन एवं घी तैयार करके बेच सकते हैं.
• उपर्युक्त वर्णित सभी उत्पाद तैयार करने में कोई ज्यादा मेहनत नहीं है परन्तु मुनाफा अच्छा मिल सकता है. डेयरी के काम में अगर साख अच्छी हो तो ग्राहक आपके द्वार पर लाइन लगा कर खड़े रहते हैं क्योंकि अच्छी चीज़ की सभी कद्र करते हैं.
• अगर आप प्रतिदिन दो सौ लीटर से अधिक दूध उत्पादित करते हैं तो एक चिल्लिंग टैंक रखा जा सकता है ताकि दूध अधिक समय तक खराब न हो. ऐसी डेयरियों को कई बड़ी कम्पनियां अनुदान एवं सहायता भी देती हैं तथा ये बदले में सारा दूध खरीद लेती हैं.
• गाँव के छोटे किसान मिल कर अपनी सहकारी संस्था भी बना सकते हैं ताकि शहर के लोग छोटा समझ कर आपका शोषण न कर सकें. सारे गाँव का दूध एक स्थान पर इकठ्ठा करके अच्छे दामों में बेचा जा सकता है.
• डेयरी पशुओं हेतु यथा संभव नई तकनीकी अपनाएं ताकि आपका व्यवसाय अधिक साफ़-सुथरा एवं लाभकारी बन सके. पुराने समय में दूध की मांग अधिक थी परन्तु कोई बेचने वाला नहीं था. आजकल परिस्थितियाँ बदल रही हैं. दूध की मांग के साथ-साथ इसका उत्पादन बहुत बढ़ गया है.
• कई लोग अपनी डेयरी को इतना सुन्दर तथा आकर्षक बनाते हैं कि वे इसे लोगों को दिखाने के लिए भी रूपए वसूल करते हैं. क्या आपकी डेयरी में कोई ऐसा आकर्षण है?
• अगर डेयरी अच्छी हो तो दूध भी अच्छा होगा और आप दूध के लिए मुँह-मांगे दाम प्राप्त कर सकते हैं. आखिर कोई तो बात है जो भाग्य-लक्ष्मी जैसी डेयरी गाय के दूध को अस्सी रूपए प्रति लीटर तक बेच सकती है जबकि हमारे किसान पच्चीस-तीस रूपए तक भी मुश्किल से पहुँच पाते हैं!
आशा है कि आप उपर्युक्त वर्णित बातों पर ध्यान देते हुए ही अपने डेयरी व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे. ऐसा करने से सफलता अवश्य ही आपके कदम चूमेगी, मुझे विश्वास है!

Thursday, March 23, 2017

क्या डेयरी व्यवसाय लाभकारी है?


आजकल देश में बढती हुई बेरोजगारी के कारण हमारे युवा स्वरोजगार के अवसर तलाश करने लगे हैं. डेयरी पशु पालन के क्षेत्र में असीम संभावनाएँ होने के कारण इनका इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है. वैसे भी कई राज्यों की सरकारें नई डेयरी स्थापित करने हेतु न केवल आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवा रही हैं बल्कि सब्सिडी की व्यवस्था भी की गई है. अगर प्रथम दृष्टया देखा जाए तो इस व्यवसाय हेतु किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती परन्तु डेयरी फार्मिंग का व्यवसाय इतना आसान भी नहीं है कि इस क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति सफल हो जाए! जो लोग जल्दबाजी में डेयरी की स्थापना कर लेते हैं, उन्हें इस कार्य की तकनीकी बारीकियों की जानकारी नहीं होती तथा उन्हें अंत में असफलता ही हाथ लगती है. इसके कई कारण हो सकते हैं.
हमारे युवा पढ़े-लिखे तो हैं परन्तु वे अत्यधिक महत्त्वकांक्षी भी हैं. उन्हें लगता है कि डेयरी की स्थापना करते ही दूध की पैदावार होने लगेगी और मुनाफा बढ़ता चला जाएगा. वे पहले दिन ही अपने पशुओं की संख्या को प्रतिदिन मिलने वाले दूध से गुणा कर देते हैं ताकि उन्हें अपनी डेयरी के दैनिक दुग्ध-उत्पादन की जानकारी मिल सके. अति-उत्साही डेयरी मालिक तो इसे 365 से गुणा करके अपनी डेयरी के वार्षिक दुग्ध-उत्पादन का आकलन करने में कोई देर नहीं लगाते जबकि ये लोग इस व्यवसाय से जुड़े कई जोखिमों को पूरी तरह नज़र-अंदाज़ कर देते हैं. ज्ञात रहे कि गायों का दुग्ध-काल एक निश्चित अवधि या 305 दिन के लिए ही होता है.  दुग्धावस्था के अंतिम तीन महीनों में इनका दुग्ध-उत्पादन धीरे-धीरे घटता जाता है.
दुग्ध-व्यवसायी अपने फ़ार्म को दूध बनाने वाली फैक्ट्री समझने की भूल कर देते हैं. डेयरी कोई दूध बनाने वाली ऑटोमैटिक मशीन नहीं होती बल्कि इसमें दूध का निर्माण गायों द्वारा उनकी दुग्ध-ग्रंथियों में होता है. दुग्ध-ग्रंथियों के विकास के लिए गाय का ग्याभिन होना अत्यंत आवश्यक है. गर्भावस्था के दौरान ही गाय की दुग्ध-ग्रंथियां दुग्ध-उत्पादन हेतु तैयार होती हैं. गायों को समय पर गर्भित करवाने हेतु इनका मद्काल प्रदर्शन करना अनिवार्य है. यदि कोई किसान अपनी गाय के मद्काल की पहचान न कर पाए तो उसे अगले मद्काल के लिए इक्कीस दिन की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है. कई बार उपयुक्त पोषण की कमी से भी पशु मद्काल में नहीं आते. जिन लोगों को गाय के स्वास्थ्य एवं प्रजनन संबंधी जानकारी नहीं होती, वे इनसे दूध लेते रहते हैं तथा इसे समय पर ग्याभिन नहीं करवा पाते. ऎसी परिस्थितियों में इनका दूध सूख जाता है तथा ग्याभिन न होने के कारण दुग्ध-ग्रंथियां भी नष्ट होने लगती हैं.
यदि गाय को देरी से ग्याभिन करवाया जाए तो इसे पूरी गर्भावस्था में चारा एवं दाना खिलाना पड़ता है जबकि दूध न मिलने के कारण इनसे कोई आमदनी भी नहीं होती. जो डेयरी किसान गायों के व्यवहार से भली भांति परिचित होते हैं, वे इन्हें समय पर गर्भित करवा देते हैं ताकि गाय न्यूनतम समयावधि के लिए ही अनुत्पादक रहे. इस तरह की सभी बातें कुशल डेयरी प्रबंधन के अंतर्गत आती हैं. डेयरी में स्वस्थ गायों के अतिरिक्त बीमार गाय भी हो सकती है. गायों की भी मृत्यु होती है जिनका स्थान नवजात बछड़ियों के गाय बनने पर ही भरा जाता है. यदि नवजात बछड़ियों की उपयुक्त देखभाल न की जाए तो इनकी मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है. गाय अत्यंत संवेदनशील प्राणी है जिसे हमारी तरह गर्मी-सर्दी का अनुभव होता है. यदि इनके आवास, खान-पान एवं प्रबंधन आवश्यकताओं पर पूरा ध्यान न दिया जाए तो डेयरी का सञ्चालन एक घाटे का सौदा हो सकता है.
गाय और बछड़ियों का खान-पान उनकी दैहिक अवस्था से प्रभावित होता है. बछड़ियों को दैहिक वृद्धि के लिए आहार की आवश्यकता है जबकि ग्याभिन गाय को अपने गर्भ में पलने वाले बछड़े हेतु पौष्टिक पोषण की आवश्यकता होती है. गाय द्वारा दुग्धावस्था में लिया गया पोषण इसके दुग्ध-उत्पादन पर निर्भर करता है. एक लाभदायक डेयरी व्यवसाय हेतु पूँजी तथा मानव संसाधन के साथ-साथ इस क्षेत्र में प्रशिक्षण भी अनिवार्य है. डेयरी के व्यवसाय को समर्पित भाव से करने की आवश्यकता पड़ती है. यदि हमारे डेयरी पशु स्वच्छ वातावरण में नहीं हैं तो वे स्वस्थ नहीं रह सकते. उल्लेखनीय है कि केवल स्वस्थ पशु ही अधिकतम दुग्ध-उत्पादन करने में सक्षम होते हैं. कुछ लोगों की मान्यता है कि जब इस व्यवसाय को अनपढ़ किसान कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं? ऐसा सोचना भी सही है परन्तु सच तो यह है कि हमारे किसान डेयरी पशुओं को अपने लाभ के लिए नहीं रखते. इनके पास तो बहुत कम दूध देने वाले पशु होते हैं जिन्हें खेतों का बचा-खुचा घास ही खाने को मिलता है. किसान अपने पशुओं से जो दूध लेते हैं, उसे अपने घर में ही उपयोग कर लेते हैं क्योंकि इनके लिए दूध पैदा करना कोई व्यापार नहीं है.

विदेशों में आजकल बड़ी-बड़ी डेयरियाँ स्थापित की जाती हैं क्योंकि अधिक पशुओं की देख-रेख एक साथ करने पर कम खर्च आता है. यहाँ अधिकतर कार्य मशीनों द्वारा होता है जिससे कार्य-कुशलता बढ़ती है. डेयरी उद्यमी अपने पशुओं को पोषण विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई खुराक ही खिलाते हैं ताकि यह न केवल स्वास्थ्यवर्धक हो बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी सस्ती हो. डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए ये लोग प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों पर ही भरोसा करते हैं. यही कारण है कि बेहतर प्रबंधन वाले बड़े डेयरी फ़ार्म छोटी एवं मझोली डेयरियों से कहीं अधिक लाभकारी हो सकते हैं. नई डेयरी की स्थापना करने पर अधिक धन का खर्च होता है जबकि लाभ प्राप्त करने में अक्सर अधिक समय लगता है.

Sunday, February 19, 2017

डेयरी पशुओं को ऍफ़.एम.डी. रोग से बचाएँ!


ऍफ़.एम.डी. रोग: मुँह-खुर या ऍफ़.एम.डी. रोग विषाणुओं (वायरस) द्वारा फैलने वाला एक संक्रामक रोग है जो गाय, बकरी, भेड़, सूअर आदि कई प्रजातियों में देखा गया है. यह रोग पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता, परन्तु इसका संक्रमण रोग-ग्रस्त पशुओं से अथवा दूषित वायु, जल, चारे के माध्यम से भी हो सकता है. संक्रमित पशुओं के दूध को 20 मिनट से अधिक समय तक उबालने पर इस रोग के विषाणु या वायरस नष्ट हो सकते हैं. बड़े डेयरी फार्म में तो संक्रमित पशुओं को बाहर निकालना (कल्लिंग करना) ही एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है. इस वायरस की लगभग सात किस्में हैं जो पशुओं में मुँह पका-खुर पका रोग के फैलने के लिए उत्तरदायी हैं. सभी वायरस प्रजातियों को नष्ट या निष्क्रिय करने के लिए कोई भी टीका बाज़ार में उपलब्ध नहीं है. वायरस संक्रमण यदि ऍफ़.एम.डी. का टीका संक्रमित पशु में मौजूद वायरस प्रजाति से मेल न खाए तो इसका कोई लाभ नहीं होता. संक्रामक ऍफ़.एम.डी. वायरस की पहचान केवल आधुनिक प्रयोगशाला में ही संभव है. इस रोग के कारण डेयरियों को अत्याधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ती है. अतः इस रोग से बचाव हेतु अपने पशुओं को ऍफ़.एम.डी. से बचाव के टीके अवश्य लगवाएँ. ये टीके सभी सरकारी पशु-अस्पतालों में मुफ्त मिलते हैं.
रोग लक्षण: ऍफ़.एम.डी. विषाणु से संक्रमित होने के चौबीस घंटे से दस दिन की अवधि तक पशु में इस रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं. कुछ पशुओं में रोग लक्षण प्रकट होने में इससे अधिक देरी भी हो सकती है. बुखार होना, मुँह एवं खुर पर जख्म होना, भूख न लगना, शारीरिक भार में कमी आना, दूध उत्पादन में गिरावट होना, मुँह से लार व झाग निकलना, कंपकंपी होना, लंगड़ा कर चलना आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं.
उपचार: लक्षण प्रकट होने पर कोई कारगर उपचार नहीं है परन्तु मुँह एवं खुर के जख्मों को पोटाशियम परमैंगनेट के घोल में धोया जा सकता है ताकि संक्रमण अन्य पशुओं तक न फ़ैल सके. मुँह के घावों पर ग्लिसरीन का उपयोग करना चाहिए. खुरों को पानी एवं फिनाइल के मिश्रण से धोया जा सकता है. पशुओं को खाने के लिए नर्म चारा ही देना चाहिए ताकि मुँह के घावों के कारण इसे खाने में कोई परेशानी न हो. रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से सदैव दूर रखना चाहिए. स्वस्थ पशुओं में इस रोग के फैलाव को रोकने के लिए बचाव टीक अर्थात ऍफ़.एम.डी. वैक्सीन का प्रयोग करना चाहिए हालांकि सभी वर्गों के विषाणुओं को नष्ट करने हेतु फिलहाल कोई एक वैक्सीन बाज़ार में उपलब्ध नहीं है.
टीकाकरण: ऍफ़.एम.डी. के निष्क्रिय विषाणुओं को टीके द्वारा पशु के शरीर में पहुँचा देते हैं जिससे वह पशु अपनी रोग-प्रतिरोध क्षमता विकसित करने लगता है. पशुओं को भविष्य में संक्रमण होने पर यह रोग-प्रतिरोध क्षमता इनके बचाव में सहायक होती है. तीन से चार महीने की बछड़ी या बछड़े को पहला ऍफ़.एम.डी. बचाव टीका दिया जा सकता है. इसके एक महीने बाद दूसरा बूस्टर टीका लगवाना चाहिए ताकि इसकी प्रतिरोध क्षमता में सुधार हो सके. बाद में हर छह महीने के अंतराल पर ऍफ़.एम.डी. टीके लगवाने चाहिएं ताकि इस रोग के प्रकोप से बचा जा सके. ऍफ़.एम.डी. के टीके हर साल फरवरी-मार्च तथा सितम्बर-अक्टूबर के महीने में लगाए जा सकते हैं.
बाज़ार में उपलब्ध वैक्सीन: इस रोग से बचाव हेतु बहुत –सी कंपनियों की वैक्सीन उपलब्ध है. उदहारण के लिए एम.एस.डी. द्वारा बेची जाने वाली ऍफ़.एम.डी. वैक्सीन सीरो-टाइप ए, ओ तथा एशिया-1 विषाणुओं के लिए प्रतिरोधी है जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि में ऍफ़.एम.डी. संक्रमण रोकने हेतु दिया जा सकता है. बड़े पशुओं में इसकी मात्रा दो मिली तथा छोटे पशुओं में एक मिली इंट्रा-मस्कुलर टीके द्वारा दी जाती है. सभी रोग-प्रतिरोधी टीके पशु-चिकित्सक के परामर्श एवं सहायता से ही पशुओं को लगाए जाने चाहिएं.
सावधानियाँ: अपने पशुओं हेतु सदैव अच्छी कंपनी द्वारा निर्मित वैक्सीन का ही उपयोग करें. वैक्सीन को हमेशा ठन्डे स्थान पर या फ्रिज में ही रखें. उच्छ-तापमान पर यह प्रभावहीन हो जाती है. बीमार अथवा रोग-ग्रस्त पशुओं को बचाव टीका न लगवाएँ. टीका लगाने से पूर्व इसे अच्छी तरह हिला लें. यथासंभव ठन्डे मौसम में ही टीकाकरण होना चाहिए. टीकाकरण अन्य पशुओं की उपस्थिति में न करें क्योंकि इससे कुछ पशु डर कर तनावग्रस्त हो सकते हैं. टीका लगाने के बाद मामूली सूजन हो सकती है जो एक सामान्य बात है. आवश्यकता पड़ने पर वहाँ एंटीसेप्टिक दवा का प्रयोग किया जा सकता है.

जब दूध सस्ता हो तो किसान क्या करें?

हमारे डेयरी किसान गाय और भैंस पालन करके अपनी मेहनत से अधिकाधिक दूध उत्पादित करने में लगे हैं परन्तु यह बड़े दुःख की बात है कि उन्हें इस ...