Thursday, March 30, 2017

डेयरी व्यवसाय से लाभ कैसे मिलेगा?

डेयरी व्यवसाय से लाभ कैसे मिलेगा?
डेयरी किसानों की सबसे बड़ी समस्या है कि जो दूध वह उत्पादित करते हैं, उन्हें बाज़ार में उसका खरीदार ही नहीं मिलता और अगर खरीदार मिल भी गया तो इसका पूरा मूल्य नहीं मिलता. किसानों की शिकायत है कि वे प्रति लीटर दूध उत्पादन पर अधिक खर्च करते हैं किन्तु उन्हें इसका लागत मूल्य भी नहीं मिलता. आइए, आज हम आपकी इस समस्या का हल निकालने की कोशिश करते हैं.
यह बात तो सही है कि नई तकनीकियाँ आने के बाद हमारे किसान उन्नति की राह में पीछे छूट रहे हैं. अब यह तो संभव ही नहीं है कि हम अपने किसानों को रातों-रात शिक्षित बना दें लेकिन उन्हें कुछ ऐसा अवश्य ही करना चाहिए जैसे आजकल हमारे शिक्षित नौजवान अपना काम कर रहे हैं.
गाय की डेयरी से हमें कई प्रकार के उत्पाद एवं उपोत्पाद प्राप्त होते हैं. इनमें दूध, गोबर, मूत्र तथा बचा हुआ घास-फूस आदि प्रमुख हैं. अगर आप अपने पशुओं का गोबर बेचेंगे तो संभव है कोई खरीदने को ही तैयार न हो. अगर कोई खरीदार मिल भी गया तो वह इसके मामूली दाम ही देगा. यही हाल दूध का है. दूध में बढ़ती हुई मिलावट की प्रवृत्ति ने ईमानदार किसानों को भी कहीं का नहीं छोड़ा है. जो किसान स्वच्छ दुग्ध-उत्पादन करते हैं उन्हें दूध बेचने में कोई विशेष परेशानी नहीं होती. कई लोग दूध निकालते समय सफाई आदि का ध्यान नहीं रखते, जिससे इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है.
बड़ी डेयरियों के टैंकर तो हज़ारों लीटर दूध खरीदते हैं जिसमें थोडा बहुत खराब भी खप जाता है. छोटे डेयरी मालिकों के लिए ऐसा करना संभव नहीं है. दूध की मात्रा इतनी कम होती है कि कोई दूध खरीदने वाला इन तक नहीं पहुँच पाता. दूध जल्द ही खराब होने वाला आहार है, अतः निकलने के तुरंत बाद ही इसका प्रसंस्करण करना आवश्यक होता है. ऐसा करने से दूध की शेल्फ लाइफ बढ़ जाती है अर्थात यह अधिक देर तक खराब हुए बिना रह सकता है. डेयरी किसानों को अपनी डेयरी में लगाए निवेश का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए.
• गोबर को व्यर्थ फैंकने से बेहतर है कि इसके उपले बना कर बेचे जाएं ताकि अधिक मूल्य प्राप्त हो.
• बचे-खुचे भूसे, मॉल-मूत्र एवं चारा अवशेषों को गला-सड़ा कर केंचुओं की सहायता से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है. इसकी बाज़ार में मांग बहुत अच्छी है तथा यह सात से आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से बेची जा सकती है.
• जिन किसानों के पास अपने संसाधन हैं वे चाहें तो गोबर गैस प्लांट भी लगा सकते हैं जिससे डेयरी की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति मुफ्त में हो सकती है.
• स्वच्छ दुग्ध-उत्पादन करें ताकि साफ़-सुथरे और मिलावट रहित दूध को देख कर ग्राहक जल्दी से खरीदने की सोचे.
• जो लोग शहरों से अधिक दूर नहीं रहते, वे दूध से खोया तैयार करके  हलवाइयों को बेच सकते हैं जो अत्यंत लाभकारी है. मैंने मथुरा और आगरा के आसपास बहुत से डेयरी किसानों को ऐसा करते हुए देखा हैं.
• दूध से पनीर बनाना भी आसान है जिसे आप स्वयं अथवा सब्जी वालों के माध्यम से अच्छे दाम में बेच सकते हैं. आजकल होटलों और ढाबों में भी इसकी खूब मांग है.
• अगर आपके आस-पास छोटी डेयरियाँ हों तो आप अपने पशुओं के दूध की फैट निकलवा सकते हैं जिसे ‘क्रीम’ कहा जाता है. यह क्रीम या तो लोकल डेयरी वाले खरीद लेते हैं या फिर आप इस क्रीम से मक्खन एवं घी तैयार करके बेच सकते हैं.
• उपर्युक्त वर्णित सभी उत्पाद तैयार करने में कोई ज्यादा मेहनत नहीं है परन्तु मुनाफा अच्छा मिल सकता है. डेयरी के काम में अगर साख अच्छी हो तो ग्राहक आपके द्वार पर लाइन लगा कर खड़े रहते हैं क्योंकि अच्छी चीज़ की सभी कद्र करते हैं.
• अगर आप प्रतिदिन दो सौ लीटर से अधिक दूध उत्पादित करते हैं तो एक चिल्लिंग टैंक रखा जा सकता है ताकि दूध अधिक समय तक खराब न हो. ऐसी डेयरियों को कई बड़ी कम्पनियां अनुदान एवं सहायता भी देती हैं तथा ये बदले में सारा दूध खरीद लेती हैं.
• गाँव के छोटे किसान मिल कर अपनी सहकारी संस्था भी बना सकते हैं ताकि शहर के लोग छोटा समझ कर आपका शोषण न कर सकें. सारे गाँव का दूध एक स्थान पर इकठ्ठा करके अच्छे दामों में बेचा जा सकता है.
• डेयरी पशुओं हेतु यथा संभव नई तकनीकी अपनाएं ताकि आपका व्यवसाय अधिक साफ़-सुथरा एवं लाभकारी बन सके. पुराने समय में दूध की मांग अधिक थी परन्तु कोई बेचने वाला नहीं था. आजकल परिस्थितियाँ बदल रही हैं. दूध की मांग के साथ-साथ इसका उत्पादन बहुत बढ़ गया है.
• कई लोग अपनी डेयरी को इतना सुन्दर तथा आकर्षक बनाते हैं कि वे इसे लोगों को दिखाने के लिए भी रूपए वसूल करते हैं. क्या आपकी डेयरी में कोई ऐसा आकर्षण है?
• अगर डेयरी अच्छी हो तो दूध भी अच्छा होगा और आप दूध के लिए मुँह-मांगे दाम प्राप्त कर सकते हैं. आखिर कोई तो बात है जो भाग्य-लक्ष्मी जैसी डेयरी गाय के दूध को अस्सी रूपए प्रति लीटर तक बेच सकती है जबकि हमारे किसान पच्चीस-तीस रूपए तक भी मुश्किल से पहुँच पाते हैं!
आशा है कि आप उपर्युक्त वर्णित बातों पर ध्यान देते हुए ही अपने डेयरी व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे. ऐसा करने से सफलता अवश्य ही आपके कदम चूमेगी, मुझे विश्वास है!

Thursday, March 23, 2017

क्या डेयरी व्यवसाय लाभकारी है?


आजकल देश में बढती हुई बेरोजगारी के कारण हमारे युवा स्वरोजगार के अवसर तलाश करने लगे हैं. डेयरी पशु पालन के क्षेत्र में असीम संभावनाएँ होने के कारण इनका इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है. वैसे भी कई राज्यों की सरकारें नई डेयरी स्थापित करने हेतु न केवल आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवा रही हैं बल्कि सब्सिडी की व्यवस्था भी की गई है. अगर प्रथम दृष्टया देखा जाए तो इस व्यवसाय हेतु किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती परन्तु डेयरी फार्मिंग का व्यवसाय इतना आसान भी नहीं है कि इस क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति सफल हो जाए! जो लोग जल्दबाजी में डेयरी की स्थापना कर लेते हैं, उन्हें इस कार्य की तकनीकी बारीकियों की जानकारी नहीं होती तथा उन्हें अंत में असफलता ही हाथ लगती है. इसके कई कारण हो सकते हैं.
हमारे युवा पढ़े-लिखे तो हैं परन्तु वे अत्यधिक महत्त्वकांक्षी भी हैं. उन्हें लगता है कि डेयरी की स्थापना करते ही दूध की पैदावार होने लगेगी और मुनाफा बढ़ता चला जाएगा. वे पहले दिन ही अपने पशुओं की संख्या को प्रतिदिन मिलने वाले दूध से गुणा कर देते हैं ताकि उन्हें अपनी डेयरी के दैनिक दुग्ध-उत्पादन की जानकारी मिल सके. अति-उत्साही डेयरी मालिक तो इसे 365 से गुणा करके अपनी डेयरी के वार्षिक दुग्ध-उत्पादन का आकलन करने में कोई देर नहीं लगाते जबकि ये लोग इस व्यवसाय से जुड़े कई जोखिमों को पूरी तरह नज़र-अंदाज़ कर देते हैं. ज्ञात रहे कि गायों का दुग्ध-काल एक निश्चित अवधि या 305 दिन के लिए ही होता है.  दुग्धावस्था के अंतिम तीन महीनों में इनका दुग्ध-उत्पादन धीरे-धीरे घटता जाता है.
दुग्ध-व्यवसायी अपने फ़ार्म को दूध बनाने वाली फैक्ट्री समझने की भूल कर देते हैं. डेयरी कोई दूध बनाने वाली ऑटोमैटिक मशीन नहीं होती बल्कि इसमें दूध का निर्माण गायों द्वारा उनकी दुग्ध-ग्रंथियों में होता है. दुग्ध-ग्रंथियों के विकास के लिए गाय का ग्याभिन होना अत्यंत आवश्यक है. गर्भावस्था के दौरान ही गाय की दुग्ध-ग्रंथियां दुग्ध-उत्पादन हेतु तैयार होती हैं. गायों को समय पर गर्भित करवाने हेतु इनका मद्काल प्रदर्शन करना अनिवार्य है. यदि कोई किसान अपनी गाय के मद्काल की पहचान न कर पाए तो उसे अगले मद्काल के लिए इक्कीस दिन की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है. कई बार उपयुक्त पोषण की कमी से भी पशु मद्काल में नहीं आते. जिन लोगों को गाय के स्वास्थ्य एवं प्रजनन संबंधी जानकारी नहीं होती, वे इनसे दूध लेते रहते हैं तथा इसे समय पर ग्याभिन नहीं करवा पाते. ऎसी परिस्थितियों में इनका दूध सूख जाता है तथा ग्याभिन न होने के कारण दुग्ध-ग्रंथियां भी नष्ट होने लगती हैं.
यदि गाय को देरी से ग्याभिन करवाया जाए तो इसे पूरी गर्भावस्था में चारा एवं दाना खिलाना पड़ता है जबकि दूध न मिलने के कारण इनसे कोई आमदनी भी नहीं होती. जो डेयरी किसान गायों के व्यवहार से भली भांति परिचित होते हैं, वे इन्हें समय पर गर्भित करवा देते हैं ताकि गाय न्यूनतम समयावधि के लिए ही अनुत्पादक रहे. इस तरह की सभी बातें कुशल डेयरी प्रबंधन के अंतर्गत आती हैं. डेयरी में स्वस्थ गायों के अतिरिक्त बीमार गाय भी हो सकती है. गायों की भी मृत्यु होती है जिनका स्थान नवजात बछड़ियों के गाय बनने पर ही भरा जाता है. यदि नवजात बछड़ियों की उपयुक्त देखभाल न की जाए तो इनकी मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है. गाय अत्यंत संवेदनशील प्राणी है जिसे हमारी तरह गर्मी-सर्दी का अनुभव होता है. यदि इनके आवास, खान-पान एवं प्रबंधन आवश्यकताओं पर पूरा ध्यान न दिया जाए तो डेयरी का सञ्चालन एक घाटे का सौदा हो सकता है.
गाय और बछड़ियों का खान-पान उनकी दैहिक अवस्था से प्रभावित होता है. बछड़ियों को दैहिक वृद्धि के लिए आहार की आवश्यकता है जबकि ग्याभिन गाय को अपने गर्भ में पलने वाले बछड़े हेतु पौष्टिक पोषण की आवश्यकता होती है. गाय द्वारा दुग्धावस्था में लिया गया पोषण इसके दुग्ध-उत्पादन पर निर्भर करता है. एक लाभदायक डेयरी व्यवसाय हेतु पूँजी तथा मानव संसाधन के साथ-साथ इस क्षेत्र में प्रशिक्षण भी अनिवार्य है. डेयरी के व्यवसाय को समर्पित भाव से करने की आवश्यकता पड़ती है. यदि हमारे डेयरी पशु स्वच्छ वातावरण में नहीं हैं तो वे स्वस्थ नहीं रह सकते. उल्लेखनीय है कि केवल स्वस्थ पशु ही अधिकतम दुग्ध-उत्पादन करने में सक्षम होते हैं. कुछ लोगों की मान्यता है कि जब इस व्यवसाय को अनपढ़ किसान कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं? ऐसा सोचना भी सही है परन्तु सच तो यह है कि हमारे किसान डेयरी पशुओं को अपने लाभ के लिए नहीं रखते. इनके पास तो बहुत कम दूध देने वाले पशु होते हैं जिन्हें खेतों का बचा-खुचा घास ही खाने को मिलता है. किसान अपने पशुओं से जो दूध लेते हैं, उसे अपने घर में ही उपयोग कर लेते हैं क्योंकि इनके लिए दूध पैदा करना कोई व्यापार नहीं है.

विदेशों में आजकल बड़ी-बड़ी डेयरियाँ स्थापित की जाती हैं क्योंकि अधिक पशुओं की देख-रेख एक साथ करने पर कम खर्च आता है. यहाँ अधिकतर कार्य मशीनों द्वारा होता है जिससे कार्य-कुशलता बढ़ती है. डेयरी उद्यमी अपने पशुओं को पोषण विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई खुराक ही खिलाते हैं ताकि यह न केवल स्वास्थ्यवर्धक हो बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी सस्ती हो. डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए ये लोग प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों पर ही भरोसा करते हैं. यही कारण है कि बेहतर प्रबंधन वाले बड़े डेयरी फ़ार्म छोटी एवं मझोली डेयरियों से कहीं अधिक लाभकारी हो सकते हैं. नई डेयरी की स्थापना करने पर अधिक धन का खर्च होता है जबकि लाभ प्राप्त करने में अक्सर अधिक समय लगता है.

जब दूध सस्ता हो तो किसान क्या करें?

हमारे डेयरी किसान गाय और भैंस पालन करके अपनी मेहनत से अधिकाधिक दूध उत्पादित करने में लगे हैं परन्तु यह बड़े दुःख की बात है कि उन्हें इस ...