Tuesday, June 5, 2018

जब दूध सस्ता हो तो किसान क्या करें?


हमारे डेयरी किसान गाय और भैंस पालन करके अपनी मेहनत से अधिकाधिक दूध उत्पादित करने में लगे हैं परन्तु यह बड़े दुःख की बात है कि उन्हें इस मेहनत का प्रतिफल नहीं मिल रहा है. ज्यादातर गाँव शहरों से दूर हैं जहाँ इस दूध को खरीदने वाला कोई नहीं है. जो गाँव शहर के समीप हैं, वहाँ दूध बेचने वाले औने-पौने दाम दे कर यह दूध बड़ी डेयरियों या शहर के अमीर ग्राहकों को महंगे भाव में बेच देते हैं. अक्सर किसान ऐसे मकड-जाल में फंस गए हैं कि उन पर इन दूधियों की बहुत बड़ी देनदारी हो गई है. यही कारण है कि न चाहते हुए भी हमारे किसान इन्हें सारा दूध सस्ते में बेचने को मजबूर हो रहे हैं. यह एक गंभीर समस्या है परन्तु हम सब मिल कर इसका कोई न कोई हल अवश्य निकाल सकते हैं. यह निश्चित है कि इसके लिए जो भी रास्ता निकलेगा वह हम सबके सार्थक प्रयासों से ही निकलेगा!
दूध सस्ता कैसे होता है?
किसी भी वस्तु के बाज़ार भाव आर्थिक दृष्टि-कोण से प्रभावित होते हैं. जब बाज़ार में दूध की मांग कम हो तो यह सस्ता और जब इसकी मांग अधिक हो तो यह महँगा बिकने लगता है. एक समय था जब देश में दूध की बहुत कमी थी परन्तु आज संगठित क्षेत्र में बड़ी डेयरियों के आने से दूध उत्पादन अत्यधिक बढ़ गया है. इन डेयरियों में दूध उत्पादन करने से खर्च कम और मुनाफा ज्यादा होता है क्योंकि प्रति लीटर दुग्ध-उत्पादन पर लागत कम होती है जिसका श्रेय आधुनिक तकनीकी और मशीनों को जाता है. इन डेयरियों में केवल अत्यधिक दूध देने वाले सर्वश्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को ही रखा जाता है. जो पशु 30 लीटर प्रति दिन से कम दूध देते हैं, उन्हें इन डेयरियों में स्थान नहीं मिलता. यहाँ प्रत्येक पशु का औसत दूध उत्पादन छोटी डेयरियों की तुलना में बहुत अधिक होता है जिससे दूध की उत्पादन लागत काफ़ी कम हो जाती है. हमारा परंपरागत किसान डेयरी के ज्यादातर काम अपने हाथ से करता है जिसमें समय और मेहनत ज्यादा खर्च होती है. कारण चाहे जो भी हो लेकिन यह भी सच है कि दूध का उत्पादन बढ़ने से इसके बाज़ार मूल्यों में अब कड़ी स्पर्द्धा होने लगी है.
दूध अधिक दाम में कैसे बेचें?
क्या आपने कभी सोचा है कि बड़ी डेयरी के लोग कभी यह शिकायत क्यों नहीं करते कि दूध का दाम बढ़ाओ? उल्लेखनीय है कि उनके यहाँ उत्पादित होने वाला दूध पहले ही बाज़ार दरों से अधिक दाम पर बिक रहा है! आज देश में कई बड़े डेयरी फ़ार्म अपने यहाँ उत्पादित होने वाले दूध को 100 रूपए लीटर तक भी बेच रहे हैं. शायद कुछ लोग मुझसे सहमत न हों परन्तु यह कड़वा सच है जिसे स्वीकार करना ही होगा. अब अगला सवाल यह है कि आप के गाँव में इसके 20-25 रूपए भी मुश्किल से मिलते हैं जबकि ये लोग मुंबई जैसे शहर में 100 रूपए प्रति लीटर कैसे बेचते हैं? इसका सीधा-सा जवाब यह है कि ये लोग अपने ग्राहकों पर नज़र रखते हैं. इनके ग्राहक इनके पास चल कर नहीं आते जबकि ये दूध लेकर अपने ग्राहक तक पहुँच जाते हैं. जाहिर है, ग्राहकों को मिलने वाली यह सुविधा मुफ्त नहीं है. मेरे कई मित्र आजकल भैंस का शुद्ध दूध 60 रूपए तथा गाय का दूध 35 रुपये प्रति लीटर तक खरीद रहे हैं. यदि ग्राहक संतुष्ट हो तो वह कुछ अधिक दाम देने में भी संकोच नहीं करता.
डेयरी का सारा परिवहन खर्च दूध की कीमत में ही शामिल होता है. आजकल लोग अच्छी गुणवत्ता का दूध अपने घर में बैठे-बिठाए लेने हेतु इसकी ऊंची कीमत भी देने को तैयार हो जाते हैं. अब सवाल उठता है कि दूध ग्राहकों तक लेकर कौन जाए? हमारा किसान कहता है कि यह मेरा काम नहीं है. किसानों के बच्चे आजकल खेतीबाड़ी से किनारा कर रहे हैं. देश में बे-रोजगारी की बड़ी गंभीर समस्या है. विदेशों में तो लोग अपने पूरे परिवार को ही डेयरी के व्यवसाय में लगा देते हैं फिर भी उन्हें अतिरिक्त लोगों की जरूरत पड़ती है. हमारे कई किसान भाई ऐसे हैं जिन्होंने अपने पशुओं की देख-रेख हेतु कई आदमी नौकरी पर रखे होंगे. इन सबका खर्च भी डेयरी से होने वाली संभावित आय से ही निकलता है.
दुग्ध-उत्पादों से अधिक लाभ कमाएँ
आजकल दूध का मूल्य संवर्धन करके विभिन्न प्रकार के पौष्टिक उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं. दूध से पनीर तो आसानी से बनाया जा सकता है. इसमें बहुत मुनाफा है. राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान अपने यहाँ तैयार किया गया पनीर 320 रूपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेचता है. अगर आप अपने घर में पनीर बनाएंगे तो यह दो सौ से सवा दो सौ रूपए प्रति किलोग्राम की लागत से तैयार हो जाता है. इसकी ट्रेनिंग डेयरी संस्थान से मिल सकती है तथा इसे बनाने हेतु कोई ज्यादा महँगी मशीन की भी जरूरत नहीं पड़ती. डेयरी किसान चाहें तो दूध से खोवा एवं दही आदि बना कर भी बेच सकते हैं. अगर आप कोई उत्पाद बनाने की स्थिति में नहीं हैं तो इसकी क्रीम निकलवा कर बेच सकते हैं. आजकल आइसक्रीम फैक्टरियों में इसकी अच्छी मांग रहती है. करें रहित दूध को सस्ती दर पर बेचा जा सकता है क्योंकि इससे चाय, दही एवं सुगन्धित डेयरी पेय तैयार किए जा सकते हैं. कुछ लोग क्रीम से देशी घी बना कर भी बेच देते हैं. निष्कर्षतः दूध का जितना बेहतर प्रसंस्करण होगा उतना ही अधिक इसका बाज़ार मूल्य भी मिलता है. साल में कभी ऐसा अवसर भी आता है जब दूध अधिक होता है परन्तु ग्राहक नहीं होते. उस समय कई मिल्क प्लांट दूध से घी और पाउडर बना कर रख लेते हैं और आराम से बेचते हैं. जब दूध की कमी होती है तो इन्हें अपनी क्षमता का दस प्रतिशत दूध भी नहीं मिलता. तब ये लोग पाउडर से दूध बना कर बेचते हैं. कुछ लोग अनार्थिक होने के कारण अपना प्लांट कुछ दिनों के लिए बंद भी कर देते हैं.
मल-मूत्र से जैविक खाद बनाएँ
आप गोबर से उपले या वर्मी-कम्पोस्ट खाद बना कर भी बेच सकते हैं. आजकल पंचगव्य के नाम से जानी जाने वाली खाद भी लोकप्रिय हो रही है. पंचगव्य प्राकृतिक सामग्री से बनी एक जैव बढ़ोत्तरी उत्तेजक औषधि है. यह पौधे के विकास को बढ़ावा देती है और साथ ही मिट्टी के जीवाणुओं से इसकी रक्षा भी करती है। पंचगव्य पशुओं और मानव के स्वास्थ्य में भी उपयोगी पाया गया है। आजकल कृषि-रसायनों और कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए लोग जैविक खेती में अधिक रुचि दिखा रहे हैं जिससे प्राकृतिक ढंग से बनी पंचगव्य जैविक खाद की माँग बढ़ रही है. अब तो किसानों ने अपने खेत में खुद ही पंचगव्य बनाना शुरू कर दिया है तथा कुछ लोग पंचगव्य का उत्पादन कर खूब मुनाफा भी कमाने लगे हैं। इसका इस्तेमाल दुधारु पशुओं, बकरी, भेड़, मुर्गी पालन, मछली और पालतू जानवरों में जैविक संवृद्धि उत्तेजक के रूप में भी किया जा रहा है। यह पौधों की रोग-प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है तथा इससे बेहतर वृद्धि दर मिलती है. इससे फसल का उत्पादन 20 से 25% तक बढ़ जाता है तथा पौधों को कम पानी की आवश्यकता पड़ती है. 20 लीटर पंचगव्य तैयार करने हेतु लगभग 1000 रूपए की सामग्री की आवश्यकता पड़ती है तथा इसे आसानी से बनाया जा सकता है. इसे बनाने में 50 रूपए प्रति लीटर का खर्च आता है जबकि बाज़ार में अच्छी गुणवत्ता का पंचगव्य लगभग 400 रूपए प्रतिकिलोग्राम तक बिक जाता है जो इसके ब्रांड नाम एवं गुणवत्ता पर निर्भर करता है. यह एक ऐसा मूल्य-संवर्धित उत्पाद है जिसे किसान स्वयं तैयार करके उपयोग में ला सकते हैं तथा इसे बेच कर खूब कमाई भी कर सकते हैं.
आय के वैकल्पिक स्रोत ढूँढें
जब दूध की माँग कम हो तो हमारे किसान कहीं से सस्ते भाव में बछड़ी या कटड़ी खरीद कर इससे गाय या भैंस तैयार कर सकते हैं. दूध का भाव कम होने पर अपनी गाय को अच्छे दाम पर बेचने हेतु भी विचार किया जा सकता है. डेयरी का अर्थ यह कतई नहीं है कि आपको केवल दूध ही बेचना है. अपने ग्याभिन पशुओं पर अधिक ध्यान दे सकते हैं तथा अतिरिक्त पशुओं को बेच कर अपने काम के लिए धन जुटा सकते हैं. जब दूध बेचने से संतुष्टि न हो तो आप चारा उगाएँ और डेयरियों को बेच दें. आप साइलेज भी बना सकते हैं, अभी राजपुरा के पास एक बहुत बड़ी कंपनी साइलेज बना कर बेच रही है. आजकल इसकी अच्छी मांग है क्योंकि पशुओं हेतु बेहतर चारा सब जगह आसानी से नहीं मिलता. देश में पशु आहार की भी काफी मांग है. कुछ लोग पशुओं हेतु फीड का निर्माण करके भी अच्छी कमाई कर सकते हैं. पशु आहार या फ़ीड बनाने की लगभग सारी सामग्री किसान अपने खेतों में ही उत्पादित करता है. इन सबका प्रसंस्करण करने पर कोई विशेष लागत भी नहीं आती. अब सवाल उठता है कि क्या हमारे किसान कोई ऐसी नीति पर काम नहीं कर सकते?
हमारे किसानों को चाहिए कि डेयरी पशुपालन व्यवसाय आरम्भ करने से पहले यह अवश्य सोचें कि उनके यहाँ दूध की पैदावार कितनी है और इसे कहाँ बेचना है? कई लोग बिना सोचे-समझे ही डेयरी का काम शुरू कर देतें हैं. जब इन्हें दूध खरीदने हेतु पर्याप्त खरीदार नहीं मिलते तो इसे घाटे में ही बेचने को तैयार हो जाते हैं. अतः हमारे किसान नई डेयरी शुरू करने से पहले अपने ग्राहकों की पहचान अवश्य कर लें. वे चाहें तो दूध खरीदने हेतु कुछ ग्राहकों से समझौता भी कर सकते हैं. ऐसे समझौते विश्वास पर आधारित होते हैं. जब आप शुद्ध दूध उचित दरों पर किसी व्यक्ति के घर तक पहुंचाएंगे तो आपको इसका वाजिब दाम जरूर मिलेगा. हालांकि शुरुआत में कुछ कठिनाई आ सकती है परन्तु बाद में सब ठीक हो जाएगा. अगर आप दस या बीस जगह पर ही दूध पहुंचा पाएँ तो यह एक अच्छी शुरुआत हो सकती है. हाँ, आपको आरम्भ में अपनी साख बनाने में कुछ दिक्कत अवश्य आ सकती हैं परन्तु एक बार आपकी साख ईमानदार दूध विक्रेता की बन गई तो लोग कुछ अतिरिक्त दाम देकर भी आप से ही दूध खरीदेंगे!
आजकल कई लोग इन्टरनेट पर सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और वाहट्सएप के जरिये भी लोगों को दूध खरीदने हेतु आमंत्रित कर रहे हैं जो एक अच्छा प्रचार माध्यम साबित हो रहा है. यदि डेयरी के व्यवसाय को सोच-समझ कर योजनाबद्ध ढंग से लागू किया जाए तो यह हमारे किसानों हेतु अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है.

Saturday, March 3, 2018

डेयरी पशुओं का दुग्ध-उत्पादन कैसे बढ़ाएँ?



सभी डेयरी किसान अक्सर पूछते रहते हैं कि वे अपनी गाय या भैंस का दूध कैसे बढ़ा सकते हैं? उल्लेखनीय है कि हमारे किसान अपने पास गाय या भैंस की बेहतरीन नस्ल ही रखते होंगे. गाय या भैंस को खाने के लिए सभी किसान अच्छा चारा एवं दाना भी खिलाते ही हैं. इसके बावजूद कुछ पशु कम दूध देते हैं. दुधारू पशु कोई दूध बनाने की फैक्ट्री नहीं होते जिन्हें आप कहीं भी खड़ा कर दें और वे दूध देने लगें! डेयरी पशु भी हमारी तरह गर्मी-सर्दी और सुख-दुःख का अनुभव करते हैं. यह बात अलग है कि कोई भी गाय अपने मालिक को यह नहीं बता सकती कि उसे क्या दुःख है और किस वजह से है. अतः हमें अपने पशुओं की आवश्यकताओं को अनुभव करने के साथ-साथ इनकी पूर्ति भी करनी होगी तथा इनके कल्याण के विषय में अधिकाधिक सोचना होगा.

एक डेयरी के दुग्ध-उत्पादन में कमी कई कारणों से हो सकती है जिन पर हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. अचानक पशुओं के रहने का स्थान बदलने से उनकी उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. गाय के बछड़े को इसकी माँ से अलग करने पर भी कई बार यह तनाव-ग्रस्त हो जाती है. एकाएक आहार में परिवर्तन भी दुग्ध-उत्पादकता को कम करता है. गायों के समूह में किसी अजनबी गाय के आने पर पशु परस्पर सामंजस्य बिठाने में असफल रहते हैं जो डेयरी में अनावश्यक संघर्ष का कारण बनता है. दूध दुहने वाले व्यक्ति अथवा ग्वाले को बदलने से भी दुग्ध-उत्पादकता में कमी हो सकती है. पशुओं को शांत एवं शुद्ध पर्यावरण में रखा जाना चाहिए ताकि इन्हें विपरीत वातावरणीय तनाव  से बचाया जा सके.



संक्षेपतः हमें अपने पालतू पशुओं के आराम, स्वास्थ्य एवं कल्याण के विषय में सदैव ही विचार करना चाहिए. कई छोटी-छोटी बातें ऐसी भी होती हैं जो डेयरी पशुओं की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं. जब गाय को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है तो इसे लम्बे सफ़र के कारण भी तनाव हो सकता है जिससे दुग्ध-उत्पादन में कमी होती है. दूध उत्पादन में अत्यधिक कमी का एक मुख्य कारण थनैला संक्रमण भी है जिसका विस्तार धीरे-धीरे या तेज़ी से हो सकता है. गायों को थनैला से बचाने के लिए इनकी साफ़-सफाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए. विषैले पौधे या खरपतवार खाने से गायों की शुष्क पदार्थ ग्राह्यता कम हो जाती है जिससे दूध में कमी आती है. इनके आहार में गैर-प्रोटीन नाइट्रोजन अथवा यूरिया की अत्यधिक मात्रा में हानिकारक हो सकती है. आवश्यकता से अधिक मात्रा में वसा, स्टार्च आदि खिलाने से रुमेन की क्रियाशीलता एवं उपचय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. अतः पशुओं को उनकी दैहिक भार के 2.5% से अधिक दाना नहीं खिलाना चाहिए. एक औसत दुधारू गाय को उसके आहार के 50% शुष्क पदार्थ से अधिक दाना नहीं देना चाहिए. अत्यधिक दूध देने वाली गायों में अक्सर विटामिन बी-12 की अल्पता हो जाती है जिसे एक सप्ताह तक इसके दैनिक इंजेक्शन द्वारा सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है. पूर्णतया मिश्रित आहार खाने वाली गायों के आहार की जाँच समय-समय पर करवाएँ ताकि इन्हें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, वसा, खनिज लवण एवं न्यूट्रल डिटर्जेन्ट फाईबर मिल सके. गायों में संक्रामक रोगों के कारण भी दुग्ध-उत्पादन कम होता है. ऎसी गायों को बुखार आता है तथा दैहिक तापमान का स्तर लगभग 39.5o सेंटीग्रेड से अधिक हो जाता है. गायों को अचानक डायरिया होने से भी दूध कम हो जाता है.  इन्हें पीने के लिए पर्याप्त जल की आपूर्ति न होने से गंभीर समस्याएँ आ सकती हैं. गायों की दुग्ध-उत्पादन क्षमता बनाए रखने हेतु दुग्धकाल के अंतिम दिनों में पूर्णतया मिश्रित आहार के साथ सामान्य से लगभग 10% अधिक दाना खिलाया जा सकता है. अत्यधिक मोटापे वाली अर्थात उच्च दैहिक अवस्था सूचकांक वाली गायों में वसा का भंडार जमा होने से दुग्ध उत्पादन में कमी आती है. आमतौर पर ऐसा दुग्धकाल के मध्य एवं अंतिम दिनों में ही होता है. इन दिनों गायों को ऊर्जा एवं प्रोटीन में संतुलन बनाते हुए ही आहार खिलाना चाहिए ताकि इन्हें अत्यधिक मोटापे से बचाया जा सके. अतः गायों को सम्पूर्ण दुग्धकाल में संतुलित आहार खिलाना आवश्यक है ताकि दूध की पैदावार सामान्य स्तर पर बनी रहे. उल्लेखनीय है कि पशुओं की आहार आवश्यकताएँ उनकी दैहिक स्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं. जब पशु शुष्क-काल में अर्थात ड्राई होता है तो इसकी आहार आवश्यकताएँ कम होती हैं तथा गर्भावस्था के अंतिम चरण में ऊर्जा की माँग अत्यधिक बढ़ जाती हैं क्योंकि इन दिनों में गर्भस्थ बछड़े को दैहिक वृद्धि हेतु तथा गाय की दुग्ध ग्रंथियों को दुग्ध-उत्पादन हेतु सर्वाधिक पोषण की आवश्यकता होती है.

यह विचारणीय है कि हमारे पुरखे अपने दुधारू पशुओं को खूंटे से खोल कर हर रोज़ सुबह गाँव के बाहर अन्य पशुओं के साथ विचरने हेतु भेजते थे. इस तरह इन्हें न केवल घूमने-फिरने का अवसर मिलता है बल्कि पशु सामाजिक रूप से भी एक दूसरे के साथ जुड़ाव का अनुभव करते हैं. यह सामाजिक मेल-मिलाप गायों और भैंसों को न केवल प्रसन्नचित्त रखता है अपितु इन्हें स्वस्थ रखने में भी अपनी भूमिका निभाता है. जब पशु बाहर जाते हैं तो इनके शेड अथवा रहने के स्थान को धोया अथवा साफ़ किया जा सकता है तथा इसे पूरी तरह सूखने का अवसर भी मिल जाता है. पशुओं को घर से बाहर निकलने पर ताज़ी हवा और धूप मिलती है जिससे इनकी त्वचा साफ़ एवं चमकदार बनी रहती है. साफ़-सुथरी त्वचा पर परजीवियों का संक्रमण भी कम होता है. पशुओं के हर रोज़ चलने-फिरने  से इन्हें व्यायाम मिलता है जिससे इनके शरीर में रक्त का संचार बेहतर होता है. बेहतर रक्त संचार के कारण पशु स्वस्थ रहने के साथ-साथ अधिक दूध भी देता है. जो पशु चराई हेतु बाहर जाते हैं, वे बहुत कम बीमार पड़ते हैं, परन्तु आजकल जगह की कमी के कारण अधिकतर पशु पालक अपने पशुओं को घर में ही रखने के लिए मजबूर हैं.

यदि पशुओं को घर में रखना एक मजबूरी है तो इन्हें यथासंभव आराम देना भी बहुत जरूरी है. जहाँ तक हो सके पशुओं को बैठने और लेटने हेतु पर्याप्त जगह तो मिलनी ही चाहिए. यदि कम स्थान पर अधिक पशु रखे जाएंगे तो उनमें संघर्ष होना तय है. पशुओं के आपस में लड़ने से उन्हें चोट लग सकती है तथा ये अत्यधिक बे-आरामी की वजह से तनावग्रस्त भी हो सकते हैं. इससे तनावग्रस्त पशुओं के दूध की गुणवत्ता न केवल कम होती है बल्कि दूध का उत्पादन भी कम हो जाता है. पशुओं के बैठने और लेटने की जगह साफ़-सुथरी एवं सूखी होनी चाहिए अन्यथा इन्हें चर्म रोग हो सकते हैं. एक गाय दिन में लगभग 12 घंटे आराम से लेटना पसंद करती है. अतः इसके लेटने का स्थान अपेक्षाकृत नर्म होना चाहिए ताकि बैठते या उठते समय गाय को कोई कष्ट न हो. आजकल अधिकतर डेयरियों में कंक्रीट के पक्के फर्श बनाए जाते हैं जो गायों के लिए बड़े तकलीफ-देह होते हैं. इनसे निजात पाने के लिए बाज़ार में रबड़ से बनी हुई मोटी शीट उपलब्ध हैं जो इनके लिए एक गद्दे की तरह काम करती हैं. यदि गाय को ऐसी शीटों पर बैठना और लेटना अच्छा लगेगा तो इससे इनके दुग्ध-उत्पादन में लगभग 10% तक वृद्धि हो सकती है. 
उल्लेखनीय है कि जो गाय अधिक दूध देती है, उसका उपचय भी तीव्र गति से होता है. प्रत्येक लीटर दूध पैदा करने में लगभग 500 लीटर खून को अयन की दुग्ध-ग्रंथियों से गुजरना पड़ता है. इसके लिए ह्रदय को बहुत कठिन परिश्रम करना होता है. यदि इनके खान-पान का उपयुक्त ध्यान न रखा जाए तो इतना अधिक दूध संश्लेषित करते हुए पशु कई बार तनाव में आ जाते हैं. एक स्वस्थ गाय दिन में अपने आराम हेतु 10 से 15 बार बैठती या खड़ी होती है. यदि यह हर बार एक मिनट अधिक आराम करे तो इसे 10 मिनट अधिक आराम मिल सकेगा. आराम की इस अवधि में इसके खून का दौरा सवा गुणा अधिक होगा. इस तरह वर्ष भर में इसे 365x10 अर्थात 3650 मिनट या 60 घंटे का अधिक आराम मिल सकता है. यदि पशु खड़े होने की बजाय अधिक समय तक लेटते या बैठते हैं तो इनके शरीर में खून का दौरा सामान्य से 25-30% अधिक होता है. इसका मतलब यह हुआ कि हमें एक घंटे में गाय से लगभग 1.7 किलोग्राम अधिक दूध मिल सकता है अर्थात 60 घंटों में 102 किलोग्राम अतिरिक्त दूध का उत्पादन हो सकता है. यदि किसी डेयरी में 100 गाय हों तो यहाँ 102 क्विंटल अधिक दूध का उत्पादन संभव है.

अतः दूध की इतनी अधिक मात्रा केवल गाय के प्रत्येक आराम करने की समयावधि में केवल 1 मिनट बढ़ाने से ही संभव हो गई जिस पर किसी प्रकार का विशेष खर्च भी नहीं किया गया था. अगर गाय को बैठने के लिए बालू रेत अथवा पुआल से तैयार नर्म सतह दें या रबड़ की शीट का उपयोग करें तो दूध उत्पादन में इतनी वृद्धि करना कोई असंभव कार्य नहीं है. गाय जितनी देर अधिक तक विश्राम करती है उतना ही इसकी मांसपेशियाँ स्वस्थ रहती हैं क्योंकि इन्हें पर्याप्त मात्रा में रक्त तथा आवश्यक पोषण मिलता है. उपर्युक्त उदाहरण में केवल एक मिनट अतिरिक्त आराम देने से ही दूध उत्पादन में अच्छी वृद्धि देखी गई है. वास्तव में देखा जाए तो गायों को इससे भी अधिक आराम देना संभव है. इसी तरह आजकल विभिन्न प्रकार के ग्रूमिंग ब्रश बाज़ार में आ गए हैं. कुछ ब्रश तो हाथ द्वारा उपयोग में लाए जा सकते हैं, जबकि अधिक संख्या में पशु होने पर विद्युत्-चलित ग्रूमिंग ब्रश का उपयोग करना चाहिए. ऐसे ब्रश के उपयोग से भी पशुओं को अत्यधिक आराम मिलता है. रक्त का संचार बढ़ता है तथा पशु स्वस्थ अनुभव करता है जिससे इन्हें तनाव नहीं होता तथा इनकी दुग्ध-उत्पादकता में वृद्धि होती है.


यदि गायों का पूरा दूध न निकाला जाए तो इनके दुग्धकाल की अवधि कम हो सकती है. मशीन द्वारा दूध निकालते समय पहले गायों को 2 मिनट तक तैयार करना चाहिए अन्यथा दूध उत्पादन में कमी हो सकती है. यदि दूध निकालने से काफी समय पहले ही दुहने की तैयारी की जाए तो यह भी हानिकारक हो सकता है. अतः मशीन मिल्किंग करते समय क्लस्टरको सही समय पर ही थनों पर लगाना चाहिए. गाय तथा भैंस में दूध निकालने हेतु मशीन-मिल्किंग की सेटिंग अलग-अलग होती है. जिन भैंसों को मशीन मिल्किंग की आदत न हो, उनका दूध हाथ से ही दुहना चाहिए. कुछ ग्वालों के दूध दुहने का ढंग सही नहीं होता जिससे पशुओं को दूध निकलवाते समय असहनीय पीड़ा होती है तथा दूध भी कम मिलता है. दूध सदैव पूरे हाथ से ही निकालना चाहिए. कुछ गाय दूध देरी से छोडती हैं, अतः इन्हें दुहने हेतु तैयार करने में अधिक समय मिलना चाहिए. गायों के कम दूध देने के कई मनोवैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं. जहाँ तक सम्भव हो दूध निकालते समय वातावरण शांत ही होना चाहिए. ढूध निकालते समय बार-बार व्यवधान होने से उत्पादन में कमी होती है. 
कुछ गायों में आनुवंशिक कारणों से भी दुग्ध-उत्पादन में कमी आ सकती है. ऎसी अवस्था में बेहतर आनुवांशिक गुणों वाली चयनित गायों को ही डेयरी में स्थान देना चाहिए ताकि किसानों को अधिकाधिक दूध उत्पादन मिल सके. यदि हम अपनी गायों की सभी दैनिक आवश्यकताओं को ध्यान से समझेंगे तो ये हमें खुश हो कर और भी अधिक दूध देंगी. अतः हमें अपनी गायों एवं अन्य दुधारू पशुओं की जरूरतों पर पूरा ध्यान देना चाहिए. एक बात सदैव याद रखें कि स्वस्थ एवं प्रसन्न गायों से मिलने वाले दूध की मात्रा एवं गुणवत्ता तनावग्रस्त गायों के दूध से कहीं अधिक बेहतर होती है. 

जब दूध सस्ता हो तो किसान क्या करें?

हमारे डेयरी किसान गाय और भैंस पालन करके अपनी मेहनत से अधिकाधिक दूध उत्पादित करने में लगे हैं परन्तु यह बड़े दुःख की बात है कि उन्हें इस ...