Thursday, March 23, 2017

क्या डेयरी व्यवसाय लाभकारी है?


आजकल देश में बढती हुई बेरोजगारी के कारण हमारे युवा स्वरोजगार के अवसर तलाश करने लगे हैं. डेयरी पशु पालन के क्षेत्र में असीम संभावनाएँ होने के कारण इनका इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है. वैसे भी कई राज्यों की सरकारें नई डेयरी स्थापित करने हेतु न केवल आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवा रही हैं बल्कि सब्सिडी की व्यवस्था भी की गई है. अगर प्रथम दृष्टया देखा जाए तो इस व्यवसाय हेतु किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती परन्तु डेयरी फार्मिंग का व्यवसाय इतना आसान भी नहीं है कि इस क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति सफल हो जाए! जो लोग जल्दबाजी में डेयरी की स्थापना कर लेते हैं, उन्हें इस कार्य की तकनीकी बारीकियों की जानकारी नहीं होती तथा उन्हें अंत में असफलता ही हाथ लगती है. इसके कई कारण हो सकते हैं.
हमारे युवा पढ़े-लिखे तो हैं परन्तु वे अत्यधिक महत्त्वकांक्षी भी हैं. उन्हें लगता है कि डेयरी की स्थापना करते ही दूध की पैदावार होने लगेगी और मुनाफा बढ़ता चला जाएगा. वे पहले दिन ही अपने पशुओं की संख्या को प्रतिदिन मिलने वाले दूध से गुणा कर देते हैं ताकि उन्हें अपनी डेयरी के दैनिक दुग्ध-उत्पादन की जानकारी मिल सके. अति-उत्साही डेयरी मालिक तो इसे 365 से गुणा करके अपनी डेयरी के वार्षिक दुग्ध-उत्पादन का आकलन करने में कोई देर नहीं लगाते जबकि ये लोग इस व्यवसाय से जुड़े कई जोखिमों को पूरी तरह नज़र-अंदाज़ कर देते हैं. ज्ञात रहे कि गायों का दुग्ध-काल एक निश्चित अवधि या 305 दिन के लिए ही होता है.  दुग्धावस्था के अंतिम तीन महीनों में इनका दुग्ध-उत्पादन धीरे-धीरे घटता जाता है.
दुग्ध-व्यवसायी अपने फ़ार्म को दूध बनाने वाली फैक्ट्री समझने की भूल कर देते हैं. डेयरी कोई दूध बनाने वाली ऑटोमैटिक मशीन नहीं होती बल्कि इसमें दूध का निर्माण गायों द्वारा उनकी दुग्ध-ग्रंथियों में होता है. दुग्ध-ग्रंथियों के विकास के लिए गाय का ग्याभिन होना अत्यंत आवश्यक है. गर्भावस्था के दौरान ही गाय की दुग्ध-ग्रंथियां दुग्ध-उत्पादन हेतु तैयार होती हैं. गायों को समय पर गर्भित करवाने हेतु इनका मद्काल प्रदर्शन करना अनिवार्य है. यदि कोई किसान अपनी गाय के मद्काल की पहचान न कर पाए तो उसे अगले मद्काल के लिए इक्कीस दिन की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है. कई बार उपयुक्त पोषण की कमी से भी पशु मद्काल में नहीं आते. जिन लोगों को गाय के स्वास्थ्य एवं प्रजनन संबंधी जानकारी नहीं होती, वे इनसे दूध लेते रहते हैं तथा इसे समय पर ग्याभिन नहीं करवा पाते. ऎसी परिस्थितियों में इनका दूध सूख जाता है तथा ग्याभिन न होने के कारण दुग्ध-ग्रंथियां भी नष्ट होने लगती हैं.
यदि गाय को देरी से ग्याभिन करवाया जाए तो इसे पूरी गर्भावस्था में चारा एवं दाना खिलाना पड़ता है जबकि दूध न मिलने के कारण इनसे कोई आमदनी भी नहीं होती. जो डेयरी किसान गायों के व्यवहार से भली भांति परिचित होते हैं, वे इन्हें समय पर गर्भित करवा देते हैं ताकि गाय न्यूनतम समयावधि के लिए ही अनुत्पादक रहे. इस तरह की सभी बातें कुशल डेयरी प्रबंधन के अंतर्गत आती हैं. डेयरी में स्वस्थ गायों के अतिरिक्त बीमार गाय भी हो सकती है. गायों की भी मृत्यु होती है जिनका स्थान नवजात बछड़ियों के गाय बनने पर ही भरा जाता है. यदि नवजात बछड़ियों की उपयुक्त देखभाल न की जाए तो इनकी मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है. गाय अत्यंत संवेदनशील प्राणी है जिसे हमारी तरह गर्मी-सर्दी का अनुभव होता है. यदि इनके आवास, खान-पान एवं प्रबंधन आवश्यकताओं पर पूरा ध्यान न दिया जाए तो डेयरी का सञ्चालन एक घाटे का सौदा हो सकता है.
गाय और बछड़ियों का खान-पान उनकी दैहिक अवस्था से प्रभावित होता है. बछड़ियों को दैहिक वृद्धि के लिए आहार की आवश्यकता है जबकि ग्याभिन गाय को अपने गर्भ में पलने वाले बछड़े हेतु पौष्टिक पोषण की आवश्यकता होती है. गाय द्वारा दुग्धावस्था में लिया गया पोषण इसके दुग्ध-उत्पादन पर निर्भर करता है. एक लाभदायक डेयरी व्यवसाय हेतु पूँजी तथा मानव संसाधन के साथ-साथ इस क्षेत्र में प्रशिक्षण भी अनिवार्य है. डेयरी के व्यवसाय को समर्पित भाव से करने की आवश्यकता पड़ती है. यदि हमारे डेयरी पशु स्वच्छ वातावरण में नहीं हैं तो वे स्वस्थ नहीं रह सकते. उल्लेखनीय है कि केवल स्वस्थ पशु ही अधिकतम दुग्ध-उत्पादन करने में सक्षम होते हैं. कुछ लोगों की मान्यता है कि जब इस व्यवसाय को अनपढ़ किसान कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं? ऐसा सोचना भी सही है परन्तु सच तो यह है कि हमारे किसान डेयरी पशुओं को अपने लाभ के लिए नहीं रखते. इनके पास तो बहुत कम दूध देने वाले पशु होते हैं जिन्हें खेतों का बचा-खुचा घास ही खाने को मिलता है. किसान अपने पशुओं से जो दूध लेते हैं, उसे अपने घर में ही उपयोग कर लेते हैं क्योंकि इनके लिए दूध पैदा करना कोई व्यापार नहीं है.

विदेशों में आजकल बड़ी-बड़ी डेयरियाँ स्थापित की जाती हैं क्योंकि अधिक पशुओं की देख-रेख एक साथ करने पर कम खर्च आता है. यहाँ अधिकतर कार्य मशीनों द्वारा होता है जिससे कार्य-कुशलता बढ़ती है. डेयरी उद्यमी अपने पशुओं को पोषण विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई खुराक ही खिलाते हैं ताकि यह न केवल स्वास्थ्यवर्धक हो बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी सस्ती हो. डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए ये लोग प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों पर ही भरोसा करते हैं. यही कारण है कि बेहतर प्रबंधन वाले बड़े डेयरी फ़ार्म छोटी एवं मझोली डेयरियों से कहीं अधिक लाभकारी हो सकते हैं. नई डेयरी की स्थापना करने पर अधिक धन का खर्च होता है जबकि लाभ प्राप्त करने में अक्सर अधिक समय लगता है.

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